Wednesday, 30 November 2011

जल्वा तेरी दीद का


जल्वा तेरी दीद का मुझको भी मिल जाता अगर |
क्या बिगड़  जाता तेरा मेरी  गली  आता  अगर ||

रख  न  पाया  मैं  ख़्यालों  में  कभी  संजीदगी |
आज बन जाता ख़ुदा मैं भी सुधर पाता  अगर ||

तू भी ख़ुद महसूस करता दिलजलों के दर्द को |
मैकदे  में एक दिन तू  बैठ  कर  आता  अगर ||

ज़लज़ला सा आ गया है एक ही बस  चोट  में | 
हश्र क्या होता मुसलसल चोट तू खाता अगर ||

बारहा दर पर तेरे सजदा न  करता  मैं   कभी |
तुझसे जन्मों का कभी होता न ये नाता अगर ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी