जल्वा तेरी दीद का मुझको भी मिल जाता अगर |
क्या बिगड़ जाता तेरा मेरी गली आता अगर ||
रख न पाया मैं ख़्यालों में कभी संजीदगी |
आज बन जाता ख़ुदा मैं भी सुधर पाता अगर ||
तू भी ख़ुद महसूस करता दिलजलों के दर्द को |
मैकदे में एक दिन तू बैठ कर आता अगर ||
ज़लज़ला सा आ गया है एक ही बस चोट में |
हश्र क्या होता मुसलसल चोट तू खाता अगर ||
बारहा दर पर तेरे सजदा न करता मैं कभी |
तुझसे जन्मों का कभी होता न ये नाता अगर ||
डा० सुरेन्द्र सैनी