ए दोस्त मेरे पास आ अब दम निकल रहा |
फिर गीत कोई गुनगुना अब दम निकल रहा ||
जिसकी तलाश में रहा हूँ मैं तमाम उम्र |
उसको कहीं से भी दो बुला अब दम निकल रहा ||
शिक़वे गिलों का सिलसिला चलता रहा सदा |
आ जा कि यार क्या गिला अब दम निकल रहा ||
जाने नज़र क्यूँ आपसे मिलकर न मिल सकी |
आखों में झाँक ले ज़रा अब दम निकल रहा ||
तेरी इनायतों का मैं कायल रहा सदा |
माथे पे हाथ दे लगा अब दम निकल रहा ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
साथ तेरा मिला ए मेरे हमसफ़र |
हौसला मिल गया ए मेरे हमसफ़र ||
आज लोगों से उनकी ख़ुशी छिन गई |
तू जो मेरा हुआ ए मेरे हमसफ़र ||
बेख़ुदी में क़दम लडखडाने लगे |
हाथ अपना बढा ए मेरे हमसफ़र ||
अब तो हर नाख़ुदा से यकीं उठ गया |
तू ही बन नाख़ुदा ए मेरे हमसफ़र ||
मेरी सासों का तू सिलसिला बन गया |
तू न होना जुदा ए मेरे हमसफ़र ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
टीस जब दिल में उठे कोई ग़ज़ल कह लेना |
आग सीने में लगे कोई ग़ज़ल कह लेना ||
प्यार बांटो सदा नफरत से क्या मिला भाई |
घर किसी का जो बसे कोई ग़ज़ल कह लेना ||
देख कर जिसकी आँखों में सुकूँ मिलता हो |
ऐसा रस्ते में मिले कोई ग़ज़ल कह लेना ||
तीरगी को मिटाने जब खुला परचम लेकर |
हौसला मंद चले कोई ग़ज़ल कह लेना ||
ज़िन्दगी में किसी कि आँख को रौशन करिए |
जब दुआ उसकी फले कोई ग़ज़ल कह लेना ||
लाख गुलचीं हों मगर अपनी हरी डाली पर |
फूल इतरा के खिले कोई ग़ज़ल कह लेना ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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