ज़ुर्म है ख़ुदकुशी है बुरी मैकशी |
तुझसे रूठें तो हम क्या करें ज़िंदगी ||
फ़स्ल लाशों की लहरा रही चार सूँ |
सरफिरों ने बमों की वो बरसात की ||
बेबसी का सहारा जो थी अब तलक |
अब वो बैसाखी भी टूटने को चली ||
आपसी रिश्ते जाते कभी के सुधर |
कुछ तुम्हारी कमी कुछ हमारी कमी ||
खो गयी शहर की इस चकाचोंध में |
गावँ के घर की छत चाँद की चाँदनी ||
प्यार भाई का सारा धरा रह गया |
मैंने हिस्से की अपनी ज़मीं मांग ली ||
अब यहाँ फिर वहाँ भागता फिर रहा |
कितना बेचैन है ? आजकल आदमी ||
प्यार होता है कैसा ? दिखायेंगे हम |
गावँ में तुम हमारे तो आना कभी ||
फोन पर,नेट पर और बाईक पे भी |
बढ़ गयी आज बच्चों की आवारगी ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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