Friday, 2 December 2011

उसूलों से कभी


उसूलों  से  कभी  गिरना  गवारा  कर  नहीं  सकते |
वे  ही इंसान मर कर भी जहाँ में  मर  नहीं  सकते ||

तुम्हे  ख़ुद से ज़ियादा प्यार तो हम कर नहीं सकते |
तुम्हारा  हुस्न  बाँका  है  मगर हम मर नहीं सकते ||

मनाते  हैं  उन्हें  जब  भी  वो  हम  से  रूठ  जाते  हैं |
कलेजे  पर  यूं  हम  भी यार पत्थर धर नहीं सकते || 

बड़े  ही  ख़ूबरू  हो  तुम  ज़माना  तो  कहे    लेकिन |
बुरा  मानो  न  हम  तारीफ़  झूठी  कर नहीं  सकते || 

किसी की मांग कुछ भी हो अगर जायज़ हो तो माने |
बिठा कर ज़िन्दगी भर पेट उसका  भर नहीं  सकते || 

करें हम उतना ही वादा निभाना  जितना हो बस में |
कभी औक़ात से बढ़ कर के वादा  कर नहीं  सकते || 

मुक़द्दर का लिखा मिलना है सबको ये सुना हमने |
मुक़द्दर के मगर हाथों में ख़ुद को धर  नहीं सकते || 

हमारा  प्यार  है  सबसे  निग़ाहों   में  शरम भी  है |
मगर हम यूँ किसी के ख़ौफ़ से तो डर नहीं सकते || 

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

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