वो गए क्या नज़र को बचा कर दिल में तूफ़ान सा उठ गया है |
दूर जाकर मुड़े मुस्कुरा कर दिल में तूफ़ान सा उठ गया है ||
अब तलक तो थे हम इस भरम में प्यार का नाम ही ज़िन्दगी है |
जब से देखा है दिल को लगा कर दिल में तूफ़ान सा उठ गया है ||
हम रदीफ़ों में उलझे पड़े थे सबने कह डाली ग़ज़लें मुक़म्मल |
चल पड़े अपनी -अपनी सुना कर दिल में तूफ़ान सा उठ गया है ||
ज़िन्दगी में किसी से न हारे ये मगर जब से औलाद आई |
ऐसा रक्खा है हमको घुमा कर दिल में तूफ़ान सा उठ गया है ||
कहने बैठे ग़ज़ल ज़िन्दगी की बीच रस्ते क़लम थम गई है |
हमने देखा उसे गुनगुना कर दिल में तूफ़ान सा उठ गया है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
याद आने लगी है किसी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं |
दास्ताँ चल पड़ी ज़िन्दगी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं ||
जाने कब से पड़ा था निठल्ला तन के कोने में बेकार ये दिल |
राह पर अब है ये बंदगी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं ||
मिलने जुलने लगे दोस्तों से आने जाने लगे महफ़िलों में |
खै़रियत पूछते हैं सभी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं ||
छा गए थे घनेरे जो बादल अब सभी दूर जाने लगे हैं |
बात अब हो रही रौशनी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं ||
जिससे क़ायम है इस दिल की धड़कन नूर आँखों में ठहरा हुआ है |
आरज़ू है फ़क़त इक उसी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
बड़ी उलझन में फंस बैठा तुम्हारी आरज़ू कर के |
फ़साना इश्क़ का बरसों पुराना फिर शुरू कर के ||
ये मेरा दिल फ़क़त दिल है शिवाला है न मस्ज़िद है |
चले आओ ज़रूरी है नहीं आना वजू कर के ||
मेरे दिल में उतर आई तेरे एहसास की ख़ुशबू |
हवाएं आ रहीं शायद तेरे दामन को छू कर के ||
तेरे चर्चे करेगें लोग सदियों तक ज़माने में |
कभी मिलने का वादा यार पूरा देख तू कर के ||
नहीं हम वो नहीं हरगिज़ कि जैसा आपने सोचा |
घडी भर को ज़रा हमसे तो देखो गुफ़्तगू कर के ||
मुझे डर है कहीं फिर आज अनहोनी न हो जाये |
बड़ी मुश्किल से लाया हूँ मैं दामन को रफ़ू कर के ||
डा० सुरेन्द्र सैनी