कोई मिहतर सड़क पर जब लगा जारूब जाता है |
किसी के आने की उम्मीद में मन डूब जाता है ||
घड़ी अक्सर वो लोगों के लिए मनहूस होती है |
मुसीबत में अकेला छोड़ जब महबूब जाता है ||
बुलाऊँ पास जब भी अपने आने से वो कतराए |
अगरचे ग़ैर की महफ़िल में तो वो ख़ूब जाता है ||
ख़बर राहत की टी.वी. पर या फिर अखबार में पढ़ कर |
गरानी का सताया आदमी अब ऊब जाता है ||
इलाक़ा भूखे नंगों का मगर नेताओं की ख़ातिर |
हमेशा गाड़ियां भर -भर वहाँ मश्रूब जाता है ||
कलेजा मुंह को आता है हमारा देख कर ये जब |
सियासी दंगों में मारा कोई मन्कूब जाता है ||
चलाते रहना अपने हाथों पाओं को किनारे तक |
कभी तैराक साहिल पे भी आकर डूब जाता है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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