Wednesday, 18 January 2012

कोई मिहतर


कोई  मिहतर  सड़क  पर  जब लगा  जारूब जाता  है |
किसी   के  आने  की  उम्मीद  में  मन  डूब  जाता  है ||

घड़ी  अक्सर  वो  लोगों  के  लिए   मनहूस  होती   है |
मुसीबत   में    अकेला  छोड़  जब  महबूब  जाता  है ||

बुलाऊँ   पास   जब  भी  अपने  आने  से  वो  कतराए |
अगरचे  ग़ैर  की  महफ़िल  में  तो  वो  ख़ूब  जाता  है ||

ख़बर राहत की टी.वी. पर या फिर अखबार में पढ़ कर |
गरानी    का   सताया   आदमी    अब  ऊब   जाता   है ||

इलाक़ा  भूखे   नंगों   का   मगर  नेताओं  की  ख़ातिर |
हमेशा    गाड़ियां    भर -भर    वहाँ  मश्रूब    जाता  है ||

कलेजा  मुंह  को  आता  है  हमारा  देख  कर  ये  जब |
सियासी    दंगों    में    मारा   कोई  मन्कूब  जाता  है ||

चलाते  रहना  अपने  हाथों  पाओं  को  किनारे  तक |
कभी   तैराक  साहिल  पे  भी  आकर  डूब  जाता  है ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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