पास सबके न बैठता हूँ मैं |
लोग कहते हैं नकचढा हूँ मैं ||
आज बच्चों ने फीस मांगी है |
जेब ख़ाली टटोलता हूँ मैं ||
हो गयी चूक तो कहीं मुझसे |
सोच कर ख़ुद को कोसता हूँ मैं ||
गीत गाऊँ वतन परस्ती के |
क्यूँ समझते हो सरफिरा हूँ मैं ?
रोज़ हाथों की इन लकीरों में |
एक बदलाव ढूंढता हूँ मैं ||
सबने अपने हुक़ूक मांगे हैं |
टुकड़ों - टुकड़ों में बँट चुका हूँ मैं ||
मेरे नक़्शे क़दम पे मत चलना |
अपने बेटे को बोलता हूँ मैं ||
ये ख़लल सा हुआ ज़िहन में क्यूँ ?
उफ़ ! ये क्या सोचने लगा हूँ मैं ?
डा० सुरेन्द्र सैनी
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